Home Home जानिए जब मालदीव की महिलाओं की बोली लगने लगी, इंडिया ने बचाया...

जानिए जब मालदीव की महिलाओं की बोली लगने लगी, इंडिया ने बचाया और आज आंख दिखा रहा

3

जानिए जब मालदीव की महिलाओं की बोली लगने लगी, इंडिया ने बचाया और आज आंख दिखा रहा

रात के 3 बजे, मालदीव के राष्ट्रपति ने 100 बार काल की। थके हुए, मगर बेहद कृतज्ञ गयूम का सम्पर्क, सेटेलाइट फोन से राजीव से कराया गया।राजीव उस रात सोए नही थे। उन्हें इस कॉल का इंतजार था।दिल्ली में राजीव से गयूम की मुलाकात तय थी, मगर अपरिहार्य कारणों से उनका दौरा स्थगित हो गया था। इसकी खबर विरोधियों को नही थी।

जानिए जब मालदीव की महिलाओं की बोली लगने लगी, इंडिया ने बचाया और आज आंख दिखा रहा
जानिए जब मालदीव की महिलाओं की बोली लगने लगी, इंडिया ने बचाया और आज आंख दिखा रहा
जानिए जब मालदीव की महिलाओं की बोली लगने लगी, इंडिया ने बचाया और आज आंख दिखा रहा

श्रीलंका में बैठे गयूम के विरोधी अरबपति ने सरकार पलटने की योजना बना रखी थी। लंकाई चीतों से डील सेट थी। गयूम दिल्ली में होते, माले में हमला होता।भाड़े के लड़ाके, हाईजैक किये शिप से माले उतरे। बहुत से इसके पहले ही, आम वेशभूषा में माले पहुँच गए थे। 4 नवंबर 1988 की रात हमला हुआ।छोटा सा शहर- आप एयरपोर्ट, टेलीफोन एक्सचेंज, सेक्रेट्रीटीएट जैसी आधा दर्जन बिल्डिंग कब्जा कर लें, तो सत्ता आपकी हुई। भाड़े के विद्रोही कब्जा कर चुके थे।

जानिए जब मालदीव की महिलाओं की बोली लगने लगी, इंडिया ने बचाया और आज आंख दिखा रहा

लेकिन राष्ट्रपति को भी तो हिरासत में लेना होगा। वे अपने पैलेस में नही थे। हमले की खबर से वे कहीं छिप गए।

जानिए जब मालदीव की महिलाओं की बोली लगने लगी, इंडिया ने बचाया और आज आंख दिखा रहा

और वहीं से अमेरिका से मदद मांगी। मगर डिएगो गार्सिया से मदद आने में कुछ दिन लगते। श्रीलंका और पाकिस्तान से मदद मांगी।पाकिस्तान ने क्षमता न होने का बहाना किया, श्रीलंका चीतों से उलझना नही चाहता था। तो ब्रिटेन से मदद मांगी। थैचर ने सलाह दी- भारत से मदद मांगो।राजीव कलकत्ता में थे, जब खबर आई। रक्षा और विदेश मंत्रालय की संयुक्त बैठक रखी गयी।राजीव सीधे एयरपोर्ट से वहीं पहुचें।

आर्मी, नेवी, एयरफोर्स का एक संयुक्त ऑपरेशन तय किया गया। नाम – ऑपरेशन कैक्टस

जानिए जब मालदीव की महिलाओं की बोली लगने लगी, इंडिया ने बचाया और आज आंख दिखा रहा

कई योजना बनी, बिगड़ी। पैराट्रूपर्स उतारने की बात सोची गयी, मगर माले इतना छोटा की ज्यादातर सैनिक, समुद्र में गिर जाते।फिर एक डेयरिंग योजना बनी।शाम होते होते आगरा से हैवी एयरक्राफ्ट, फौजी, साजोसामान, जीपें लेकर प्लेन माले चला। और सीधे हुलहले एयरपोर्ट पर उतर गया। घुप्प अंधेरे में ये लैंडिंग जानलेवा हो जलती थी।तुरन्त ही फौजी और जीपें बिखर गए। एयरपोर्ट थोड़ी बहुत सँघर्ष के बाद कब्जे में आ गया। इतने में और विमान उतर गए।कुछ ही घण्टो में माले में विद्रोहियों की लाशें बिखरी पड़ी थी। खेल खत्म हो गया था।सेफ हाउस में छिपे गयूम से माले के भारतीय राजदूत मिले। बताया कि विद्रोह कुचल दिया गया है। वे सेफ हैं।राजीव को मदद की गुहार लगाए महज सोलह घण्टे हुए थे। त्वरित मदद से अभिभूत, थके हुए, मगर बेहद कृतज्ञ गयूम ने राजदूत से कहा – मैं प्रधानमंत्री राजीव से बात करना चाहता हूँ..
इसके बाद, मालदीव एक स्ट्रेटजिक एसेट के रूप में भारत का ठिकाना बना। हिन्द महासागर में भारत को एक मजबूत ताकत बनाने में, वहां क्रिएट किया गया फौजी ठिकाना, हमे थाह देता रहा। तीन दशक तक ..

 

 

3 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Discover more from Tazakhabarnow

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading

Exit mobile version